BAGLAMUKHI SADHNA NO FURTHER A MYSTERY

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एवं ध्यात्वा परेशानि! बगला-कवचं स्मरेत् ।।४ श्रीबगला-खड्ग-माला-स्तोत्रोक्त्त ध्यान

३८. ॐ ह्लीं श्रीं फं श्रीउमायै नमः – वाम-पार्श्वे (बाईं बगल में)

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४४. ॐ ह्लीं श्रीं लं श्रीमाहेश्वर्यै नमः – ककुदि ( गर्दन के पीछे मध्य में) ।

वज्रारि-रसना-पाश-मुद्गरं दधतीं करैः । महा-व्याघ्रासनां देवीं, सर्व-देव-नमस्कृताम् ।।३

‘श्रीं ‘ लगाने से कुबेर केसमान वैभव की प्राप्ति होती है।

वृहस्पतिर्मातारश्वोत वायुस्संध्वाना वाता अभितो गृणन्तु ॥

वादी मूकति, रङ्कति क्षिति-पतिर्वैश्वानरः शीतति ।

वाग् वै देवानां मनोता तस्यां हि तेषां मनांसि ओतानि

उक्त ‘कवच’ की विस्तृत ‘फल-श्रुति’ में स्वयं भगवान् शिव के शब्दों में यह उल्लिखित है कि

श्मशाने जल-मध्ये च, भैरवश्च सदाऽवतु । द्वि-भुजा रक्त-वसनाः, सर्वाभरण-भूषिताः ।

भगवती बगला के ‘ध्यान’ को समझकर उसका समुचित रूप से ज्ञान प्राप्त करना परम आवश्यक है। ‘ध्यान´ के अनुसार चिन्तन होने पर ही सिद्धि website प्राप्त होती है इसीलिए कहा गया है- `ध्यानं विना भवेन्मूकः, सिद्ध-मन्त्रोऽपि साधकः ।’ अर्थात् ध्यान के बिना सिद्ध-साधक भी गूँगा ही रहता है।

‘सुभूता’ आनन्दार्थ अनेक रूपों में आविर्भाव होनेवाली।

‘ॐकारो’ मे शिरः पातु, ‘ह्लींकारो’ वदनेऽवतु । ‘बगला-मुखी’ दोर्युग्मं, कण्ठे ‘सर्व’ सदाऽवतु।। १

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